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Saturday, 18 July 2020

४ कषाय (जैन गणित)


 कषाय

जो आत्मा को कर्मों से कसे अर्थात दुःख दे।

१. क्रोध (गुस्सा)
२. मान (घमण्ड)
३. माया (छल-कपट)
४. लोभ (लालच)

१. क्रोध
दूसरे का बुरा करने को क्रोध कहते हैं।
२. मान 
दूसरे को  नीचा , अपने को  ऊंचा दिखाने की इच्छा हो उसे मान कहते हैं।
३. माया
छल द्वारा कार्य सिद्ध करने की इच्छा सो माया।
४. लोभ
इष्ट पदार्थ के लाभ की इच्छा सो लोभ।

द्वेष रूप कषाय‌- क्रोध , मान
राग रूप कषाय- माया, लोभ

कुल कषाय के भेद

4 = क्रोध, मान, माया, लोभ

16 = अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण , प्रत्याख्यानावरण , संज्वलन (४*४)

25 = 16 कषाय + 9 नोकषाय

अनंतानुबंधी- जो मिथ्यात्व के साथ रहे , मोक्ष मार्ग शुरु न होने दें।

अप्रत्याख्यानावरण- किंचित त्याग न होने दें।

प्रत्याख्यानावरण- पूर्ण त्याग न होने दें।

संज्वलन- पूर्ण वीतरागी न होने दें।

कषाय की अवधि व उदाहरण

अनंतानुबंधी- 6 माह से अधिक

उदाहरण- पत्थर की रेखा

अप्रत्याख्यानावरण- 15 दिन से अधिक

उदाहरण- पृथ्वी की रेखा

प्रत्याख्यानावरण- अंतर्मूहूर्त से अधिक

उदाहरण- धूली की रेखा

संज्वलन-

उदाहरण- जल रेखा

नोकषाय

हास्य, रति , अरति , शोक , भय , जुगुप्सा , स्त्री वेद , पुरुष वेद , नपुंसक वेद

कषाय क्यों होती है?

🔷 जब हम ऐसा मानते हैं कि इसने मेरा बुरा किया तो क्रोध होता है।

🔶 जब हम ये मानते हैं कि दुनियां की वस्तुएं मेरी है, मैं इनका स्वामी हूं तो मान होता है।

🔴 जब हम ये मानते हैं कि छल-कपट से मेरा काम सिद्ध होगा तो माया करते हैं।

🔵 किसी वस्तु को देख प्राप्ति की इच्छा होती है तो लोभ करते हैं।

🤬 कषाय मिटाने का उपाय क्या हैं?

तत्व ज्ञान के अभ्यास से पदार्थ न तो अनुकूल मालूम हों न प्रतिकूल।



1 comment:

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