Search This Blog

Friday, 17 July 2020

३ रत्नत्रय (जैन गणित)


रत्नत्रय

१. सम्यकदर्शन
२. सम्यकज्ञान 
३. सम्यक्चारित्र

१. सम्यक दर्शन

अपने आत्म स्वरूप के अनुभूतियुत बोध को सम्यक्दर्शन कहते है।

जिस जीव को सम्यक्त्व का अभाव है अर्थात जो जीव सम्यक्त्व रहित है और कठिनतम व्रत तप का आचरण करता हूं, उस जीव की संयम क्रिया इस प्रकार अकार्यकारी है जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष।जो जीव सम्यक्त्व से संयुक्त है वह पात्र है, उसे ज्ञानीजनों ने हमेशा श्रेष्ठ कहा है।

२. सम्यक ज्ञान

स्व-पर के यथार्थ निर्णय को सम्यक्ज्ञान कहते है।

सम्यक्ज्ञान तीन लोक में सार है, सम्यक्ज्ञान दर्शन अर्थात निर्विकल्पता के मार्ग को दर्शाता है। लोक प्रमाण को
जानता है। इस सम्यक्ज्ञान स्वभाव वाला में शुद्धात्मा हूँ।सम्यक्ज्ञान पूर्वक जो जीव आत्म स्वभाव को जानता है यही मुक्ति का मार्ग सिद्ध स्वरूप में लीन होने का उपाय है।
जिनेन्द्र परमात्मा कहते है कि ज्ञान समस्त रूपों से अतीत है और सम्पूर्ण लोक को व्यक्त करने वाला है, यह सम्यक्ज्ञान ही तीन लोक में सार है।

३. सम्यक्चारित्र

ज्ञायक ज्ञान स्वभाव में रहने को सम्यक्चारित्र कहते है।

सम्यक्दर्शन सम्यक्ज्ञान सहित जो राग-द्वेष के अभाव रूप सम भावना होती है यही सम्यक्चारित्र है। शुद्ध आचरण ही सम्यक्चारित्र है, इसे 2 प्रकार से जानना चाहिए।
पहला सम्यक्त्वाचरण चारित्र है, दूसरा संयमाचरण चारित्र है।

सम्यक्त्वाचरण चारित्र सहित जो जीव दर्शन ज्ञानमयी शुद्ध स्वभाव में आचरण करते है, वे कर्म मलों की प्रकृतियों से मुक्त होकर अल्पकाल में निर्वाण को प्राप्त करते है।

सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान प्राप्त करके अब सम्यकचारित्र प्रगट करना चाहिये! उस सम्यक् चारित्र के दो भेद हैं- एकदेश चारित्र तथा सकलचारित्र!

एकदेश चारित्र- पांचों पापों का स्थूल रूप से त्याग सो अणुव्रत है!इसका पालन श्रावक
करते हैं!
सकल चारित्र- इसका पालन हमारे मुनिराज करते हैं!

समस्त पाप सहित मन वचनकाय के योगों को त्याग करने से चारित्र होता है!

पांचों पापों का अभाव होना ही चारित्र है!
हिंसा झूट चोरी कुशील और परिग्रह-ये पांचों पापों के आगमन के परनाले हैं- इनसे विरक्त होना ही चारित्र है!

पांच अणुव्रत- तीन गुणव्रत ,चार शिक्षाव्रत ,ऐसे 12व्रतों का पालन श्रावक करते हैं!

सम्यक्त्वचरित्रबोधलक्षणो मोक्षमार्ग इत्येष:।
मुख्योपचाररूप: प्रापयति परं पदं पुरुषम्।।

अपने आत्मा का निश्चय सम्यक दर्शन है आपने आत्मा का ज्ञान सम्यक ज्ञान है अपने आत्मा में स्थिरता सम्यक चारित्र है। इन तीनों से कर्म बंध नहीं होता है। निश्चय व्यवहार रत्नत्रय स्वरूप मोक्ष मार्ग यही आत्मा को परम पद में पहुंचा देता है।


No comments:

Post a Comment

अक्षय तृतीया का पावन पर्व

भजन-  अक्षय तृतीया पर्व है आया, आहार दान का,,,,, लय- थोड़ा सा प्यार हुआ है,,,,, स्वर- सुप्रिया जैन शब्द संयोजन- सुप्रिया जैन 🌹अक...