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Wednesday, 15 July 2020

१. आत्मा (जैन गणित)


आत्मा

आत्मा को जीव तत्व भी कहते है। आत्मा अमिलन अनछुआ अविनाशी तत्व है। आत्मा का न तो जनम होता है और न ही इसका मरण होता है।
यह आत्मा दर्शन ज्ञान सहित है, वीतराग चारित्रवान है। आत्मा ही वास्तव मैं श्री जिनेंद्र परमात्मा है।

हर एक आत्मा को जब निश्चय नय से या पुद्गल के स्वभाव से देखा जावे तब देखनेवाले के सामने अकेला एक आत्मा सर्व पर के संयोग रहित खड़ा हो जायेगा । तब वहां न तो आठों कर्म दिखेंगे , न शरीरादि नोकर्म दिखेंगे , न राग-द्वेषादि भावकर्म दिखेंगे । सिद्ध परमात्मा के समान हर एक आत्मा दिखेगा । यह आत्मा वास्तव में अनुभव से पर है। तथापि समझने के लिए कुछ विशेष गुणों के द्वारा अचेतन द्रव्यों से जुदा करके बताया गया है। छः विशेष गुण ध्यान देने योग्य है।

 १. ज्ञान- जिस गुण के द्वारा यह आत्मदीपक के समान आपको तथा सर्व जानने योग्य द्रव्यों की गुण पर्यायों को एक साथ क्रम रहित जानना,इसी को केवलज्ञान स्वभाव कहते हैं।

 २. दर्शन- जिस गुण के द्वारा सर्व पदार्थों के सामान्य स्वभाव को एक साथ देखा जा सके वह केवल दर्शन स्वभाव है। सामान्य अंश को ग्रहण करने वाला दर्शन है।

 ३. सुख- जिस गुण के द्वारा परम निराकुल अद्वितीय आनंदामृत का निरंतर स्वाद लिया जावे। हर एक आत्मा अनंत सुख का सागर है।

 ४. वीर्य- जिस शक्ति से अपने गुणों का अनंत काल तक भोग या उपभोग करते हुये खेद व थकावट न हो , निरंतर सहज ही शांत रस में परिणमन हो , हर एक आत्मा अनंतवीर्य का धनी है। पुद्गल में भी वीर्य है , परंतु आत्मा का वीर्य उससे अनंत गुणा है।

 ५. चेतनत्व- चेतनपना , अनुभपना ''चैतन्यं अनुभवनं'' अपने ज्ञान का स्वभाव का निरंतर अनुभव करना, कर्म का व कर्मफल का अनुभव नहीं करना।

६. अमूर्तत्व-  यह आत्मा यद्यपि असंख्यात प्रदेशी एक अखंड द्रव्य है तथापि यह स्पर्श, रस,गंध,वर्ण से रहित अमूर्तिक हैं।

यदि मोक्ष का लाभ चाहते हो तो रात दिन उस आत्मा का मनन करो जो शुद्ध वीतराग निरंजन कर्म रहित है चेतना गुणधारी है या ज्ञान चेतनामय है जो स्वयं बुद्ध है जो संसार विजयी जिनेन्द्र है व जो केवलज्ञानी या पूर्ण निरावरण ज्ञानस्वभाव का धारी हैं।


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