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Wednesday, 5 August 2020

अक्षय तृतीया का पावन पर्व

भजन- अक्षय तृतीया पर्व है आया, आहार दान का,,,,,
लय- थोड़ा सा प्यार हुआ है,,,,,
स्वर- सुप्रिया जैन
शब्द संयोजन- सुप्रिया जैन

🌹अक्षय तृतीया का पावन पर्व🌹

अक्षय तृतीया पर्व है आया, आहार दान का,,,
कितने महीने बाद मुनि ने, आहार दान है पाया,,,

🌸 *दृश्य-1 संसार से वैराग्य की ओर*

*ऋषभ* जी भोग रहे थे, अपनी संसार अवस्था,,
तभी दरबार मे आयी, नृत्यकारी *नीलांजना*
नृत्य करते करते जब, नीलांजना मूर्छित हो गई
*वैराग्य* आया ऋषभ को, देखकर दृश्य ये सारा
छोड़कर राज्य ये सारा,,,,,,होSss 2
चले ऋषभ वन की तरफ को,,,,,,,,
*अक्षय तृतीया* पर्व है आया, आहार दान का,,,
कितने महीने बाद मुनि ने, आहार दान है पाया,,,

🌸 *दृश्य-2* *तप से उपवास और उपवास से आहार की ओर*

मुनि जब वन को पहुँचे, लिया उपवास जिन्होंने,,,
*छः महीने तप* लीन हुए फिर, उठे *विधि आहार* सीखाने,,
विधि को जब लेकर प्रभुवर, निकले *हस्तिनापुर* नगर में,,
*सात महीने तेरह दिन* बीते, मगर कोई बिधि न जाने
*राजा श्रेयांश* को जब, याद पिछला भव आया
याद आया उन्हें जब, आहार देने का तरीका,,,
हुआ पड़गाहन मुनि का,,,,,, होssss 2
और *इक्छु रस* मुनि ने पाया,,,,,
*अक्षय तृतीया* पर्व है आया, आहार दान का,,,
कितने महीने बाद मुनि ने, आहार दान है पाया,,,

Monday, 20 July 2020

छ: द्रव्य (जैन गणित)


छ: द्रव्य

द्रव्य

गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं । 

द्रव्य कितने होते हैं?

जाति अपेक्षा द्रव्य छः होते हैं।

द्रव्यों के नाम 

1. जीव, 

2. पुद्गल, 

3. धर्म, 

4. अधर्म, 

5. आकाश, 

6. काल। 

जीव द्रव्य 

जिसमें जानने और देखने की शक्ति होती है उसे जीव किसे कहते हैं ।

पुद्गल द्रव्य 

जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाया जाए और जिसका गलना ही स्वभाव हैं।

धर्म द्रव्य 

यहाँ पुजा-पाठ को धर्म नहीं कहा गया है।

यह धर्म द्रव्य की बात है।

जो स्वयं गतिशील रहते हुऐ गतिशील वस्तु को गति प्रदान करें।

जैसे चलती हुई मछली को बहता हुआ पानी

अधर्म द्रव्य 

यहां पाप को अधर्म नहीं कहा गया है*

यह अधर्म द्रव्य कि बात है

गमनपूर्वक

ठहरने वाले

जीव और पुद्गल को

जो ठहरन में निमित्त हैे

जैसे- पथिक को शीतल छाया 

धर्म और अधर्म द्रव्य कहाँ स्थित है?

सम्पूर्ण लोक में

तिल में तेल के समान फेले हुए हैं।

आकाश द्रव्य 

जो छहों द्रव्यों को रहने के लिए स्थान देता है।

प्रश्न- ऊपर नीले रंग में दिखने वाला कौन सा द्रव्य है?

उत्तर- पुद्गल 

प्रश्न- ऐसा कौन-सा स्थान है जहाँ रहने के लिए स्थान नहीं है?

उत्तर- आकाश का दूसरा नाम स्थान ही है। इसलिए आकाश सर्वत्र है। 

काल द्रव्य 

जो समस्त वस्तुओं के परिणमन (परिवर्तन) में निमित्त हो ।

काल द्रव्य कि अवस्था का नाम समय है अथवा दिन, घण्टा, घड़ी, महिना, वर्ष का नाम काल हैं।

प्रश्न- कौन-सा द्रव्य किस वस्तु में निमित्त है?

उत्तर- द्रव्य- धर्म, अधर्म, आकाश, काल

किसको निमित्त- 

धर्म- जीव और पुद्गल को

अधर्म- जीव और पुद्गल को

आकाश- सभी को

काल- सभी को

किसमें-

धर्म- चलने में

अधर्म- ठहरने में

आकाश- रहने में

काल- बदलने में

पुद्गल- रुपी द्रव्य अर्थात दिखने वाला द्रव्य

पुद्गल को छोड़कर शेष ५ अमूर्तिक (अरूपी) हैं।

अरूपी- जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण न पाया जाये।

अजीव द्रव्य कितने हैं?

पाँच- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल

प्रत्येक द्रव्य कितने कितने हैं?

जीव- अनंत

पुद्गल- जीवों से अनंत गुण अर्थात अनंतानंत

धर्म, अधर्म, आकाश- एक-एक

काल- असंख्यात

विश्व क्या है?

छह द्रव्यों के समुह को विश्व कहते हैं इन छह द्रव्यों से अभीष्ट विश्व में और कुछ भी नहीं है।

विश्व को बनाने वाला कौन है?

कौई नहीं, इसे भगवान ने भी नहीं बनाया है,विश्व अनादि, अनंत,स्वनिर्मित है ।

भगवान का क्या काम है?

भगवान विश्व को जानते हैं, कर्ता-हर्ता नहीं है। 

विश्व में जो कार्य होते हैं उसका कोई तो कर्ता होगा?

प्रत्येक द्रव्य अपने अपने कार्यों को कर्ता स्वयं है ।

कोई किसी का कर्ता नहीं है। जो ऐसा मान लेते हैं वही आगे चलकर भगवान बनते हैं।

द्रव्य को जानने से क्या लाभ है?

हम भी एक द्रव्य हैं, गुणों के पिण्ड हैं - इससे दीनता की भावना मिलती है।

विश्व व्यवस्था का ज्ञान होता है।

ग्रहीत मिथ्यात्व मिटता है।

ऐसा  ज्ञान होता है कि - भगवान कर्ता नहीं है।

में भी कर्ता नहीं हूँ।

यह जगह मेरी नहीं है।

परिणमन का कारण काल द्रव्य है।

आदि अनेक लाभ भी बताए गये हैं।


Sunday, 19 July 2020

5 इंद्रियां (जैन गणित)


इंद्रियां


इंद्रियां

जो शरीर के चिन्ह आत्मा का ज्ञान कराने में सहायक हैं वे ही इंद्रियां है। 

Note:- जानता तो आत्मा ही है, इंद्रियां तो निमित्त मात्र है।

जो इन्द्र की तरह राज करे उसे इंद्रिय कहते हैं।

जैसे - इन्द्र के सामने किसी की नहीं चलती उसी प्रकार इन इंद्रियों के आगे हमारी भी नहीं चलती, हम इनके निर्देशानुसार पाप कार्यों में प्रवृति करने लगते हैं। 

वर्ना जानते तो सभी है कि पाप नहीं करना चाहिए 

इन्द्रियाँ 5 होती है-

१. स्पर्शन

२. रसना

३. घ्राण

४. चक्षु

५. कर्ण

1. स्पर्शन- जिससे छूने पर, कड़ा- नरम, रूखा- चिकना, ठंडा- गरम, हल्का भारी, आदि का ज्ञान होता है उसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते है।

विषय- 8

कड़ा- नरम, रूखा- चिकना, ठंडा- गरम, हल्का भारी। 

2. रसना- जीभ जिससे स्वाद लेने पर मीठा खट्टा, कड़वा, कषायला, चरपरा आदि स्वाद का ज्ञान होता है उसे रसना इन्द्रिय कहते है।

विषय- 5

मीठा-खट्टा, कड़वा, कषायला, चरपरा। 

3. घ्राण- नासिका जिससे सूंघने पर सुगंध-दुर्गंध का ज्ञान होता है उसे घ्राण इन्द्रिय कहते है।

विषय- 2

सुगंध-दुर्गंध।

4. चक्षु- नेत्र जिनसे हमें काला, नीला, सफेद, लाल, पीला इन रंगों का ज्ञान होता है उसे चक्षु इन्द्रिय कहते है।

विषय- 5

काला, नीला, सफेद, लाल, पीला। 

5. कर्ण- कान जिनसे हम सुनते है, उसे कर्ण इन्द्रिय कहते है।

विषय- 7

प्रायोगिक और वैश्रसिक,

ढोलक, वीणा, बांसुरी आदि की ध्वनि को प्रायोगिक कहते हैं।

बादल के गरजने,बिजली कडकने,पत्तों के खडकने, झरनों आदि की ध्वनि को वैश्रसिक कहते हैं।

इस तरह सात कर्णेंद्रिय के विषय हैं!

किस जीव की कितनी इन्द्रियाँ होती है

जीव                       इन्द्रियाँ

एकेन्द्रिय                 स्पर्शन।

दोइन्द्रीय                 स्पर्शन, रसना।

तीन इन्द्रिय              स्पर्शन, रसना, घ्राण।

चार इन्द्रिय              स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु।

पंचेन्द्रिय                  स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण।

इंद्रियां कहाँ बनी है शरीर पर

और मैं कौन हूँ आत्मा

यानि शरीर से पूरी तरह भिन्न

तो जब इंद्रिया ही मेरी नहीं तो इंद्रिय ज्ञान मेरा कैसे हुआ

पर ज्ञान तो मुझमें है, तो मेरा ज्ञान कैसा है अतीन्द्रिय यानि इन्द्रियों के बिना भी मेरा ज्ञान काम करता है।

आत्मा का हित तो आत्मा के जानने में है।

आत्मा को न जानने से इन्द्रिय ज्ञान कुछ भी नही है।


Saturday, 18 July 2020

४ कषाय (जैन गणित)


 कषाय

जो आत्मा को कर्मों से कसे अर्थात दुःख दे।

१. क्रोध (गुस्सा)
२. मान (घमण्ड)
३. माया (छल-कपट)
४. लोभ (लालच)

१. क्रोध
दूसरे का बुरा करने को क्रोध कहते हैं।
२. मान 
दूसरे को  नीचा , अपने को  ऊंचा दिखाने की इच्छा हो उसे मान कहते हैं।
३. माया
छल द्वारा कार्य सिद्ध करने की इच्छा सो माया।
४. लोभ
इष्ट पदार्थ के लाभ की इच्छा सो लोभ।

द्वेष रूप कषाय‌- क्रोध , मान
राग रूप कषाय- माया, लोभ

कुल कषाय के भेद

4 = क्रोध, मान, माया, लोभ

16 = अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण , प्रत्याख्यानावरण , संज्वलन (४*४)

25 = 16 कषाय + 9 नोकषाय

अनंतानुबंधी- जो मिथ्यात्व के साथ रहे , मोक्ष मार्ग शुरु न होने दें।

अप्रत्याख्यानावरण- किंचित त्याग न होने दें।

प्रत्याख्यानावरण- पूर्ण त्याग न होने दें।

संज्वलन- पूर्ण वीतरागी न होने दें।

कषाय की अवधि व उदाहरण

अनंतानुबंधी- 6 माह से अधिक

उदाहरण- पत्थर की रेखा

अप्रत्याख्यानावरण- 15 दिन से अधिक

उदाहरण- पृथ्वी की रेखा

प्रत्याख्यानावरण- अंतर्मूहूर्त से अधिक

उदाहरण- धूली की रेखा

संज्वलन-

उदाहरण- जल रेखा

नोकषाय

हास्य, रति , अरति , शोक , भय , जुगुप्सा , स्त्री वेद , पुरुष वेद , नपुंसक वेद

कषाय क्यों होती है?

🔷 जब हम ऐसा मानते हैं कि इसने मेरा बुरा किया तो क्रोध होता है।

🔶 जब हम ये मानते हैं कि दुनियां की वस्तुएं मेरी है, मैं इनका स्वामी हूं तो मान होता है।

🔴 जब हम ये मानते हैं कि छल-कपट से मेरा काम सिद्ध होगा तो माया करते हैं।

🔵 किसी वस्तु को देख प्राप्ति की इच्छा होती है तो लोभ करते हैं।

🤬 कषाय मिटाने का उपाय क्या हैं?

तत्व ज्ञान के अभ्यास से पदार्थ न तो अनुकूल मालूम हों न प्रतिकूल।



Friday, 17 July 2020

३ रत्नत्रय (जैन गणित)


रत्नत्रय

१. सम्यकदर्शन
२. सम्यकज्ञान 
३. सम्यक्चारित्र

१. सम्यक दर्शन

अपने आत्म स्वरूप के अनुभूतियुत बोध को सम्यक्दर्शन कहते है।

जिस जीव को सम्यक्त्व का अभाव है अर्थात जो जीव सम्यक्त्व रहित है और कठिनतम व्रत तप का आचरण करता हूं, उस जीव की संयम क्रिया इस प्रकार अकार्यकारी है जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष।जो जीव सम्यक्त्व से संयुक्त है वह पात्र है, उसे ज्ञानीजनों ने हमेशा श्रेष्ठ कहा है।

२. सम्यक ज्ञान

स्व-पर के यथार्थ निर्णय को सम्यक्ज्ञान कहते है।

सम्यक्ज्ञान तीन लोक में सार है, सम्यक्ज्ञान दर्शन अर्थात निर्विकल्पता के मार्ग को दर्शाता है। लोक प्रमाण को
जानता है। इस सम्यक्ज्ञान स्वभाव वाला में शुद्धात्मा हूँ।सम्यक्ज्ञान पूर्वक जो जीव आत्म स्वभाव को जानता है यही मुक्ति का मार्ग सिद्ध स्वरूप में लीन होने का उपाय है।
जिनेन्द्र परमात्मा कहते है कि ज्ञान समस्त रूपों से अतीत है और सम्पूर्ण लोक को व्यक्त करने वाला है, यह सम्यक्ज्ञान ही तीन लोक में सार है।

३. सम्यक्चारित्र

ज्ञायक ज्ञान स्वभाव में रहने को सम्यक्चारित्र कहते है।

सम्यक्दर्शन सम्यक्ज्ञान सहित जो राग-द्वेष के अभाव रूप सम भावना होती है यही सम्यक्चारित्र है। शुद्ध आचरण ही सम्यक्चारित्र है, इसे 2 प्रकार से जानना चाहिए।
पहला सम्यक्त्वाचरण चारित्र है, दूसरा संयमाचरण चारित्र है।

सम्यक्त्वाचरण चारित्र सहित जो जीव दर्शन ज्ञानमयी शुद्ध स्वभाव में आचरण करते है, वे कर्म मलों की प्रकृतियों से मुक्त होकर अल्पकाल में निर्वाण को प्राप्त करते है।

सम्यक दर्शन और सम्यक ज्ञान प्राप्त करके अब सम्यकचारित्र प्रगट करना चाहिये! उस सम्यक् चारित्र के दो भेद हैं- एकदेश चारित्र तथा सकलचारित्र!

एकदेश चारित्र- पांचों पापों का स्थूल रूप से त्याग सो अणुव्रत है!इसका पालन श्रावक
करते हैं!
सकल चारित्र- इसका पालन हमारे मुनिराज करते हैं!

समस्त पाप सहित मन वचनकाय के योगों को त्याग करने से चारित्र होता है!

पांचों पापों का अभाव होना ही चारित्र है!
हिंसा झूट चोरी कुशील और परिग्रह-ये पांचों पापों के आगमन के परनाले हैं- इनसे विरक्त होना ही चारित्र है!

पांच अणुव्रत- तीन गुणव्रत ,चार शिक्षाव्रत ,ऐसे 12व्रतों का पालन श्रावक करते हैं!

सम्यक्त्वचरित्रबोधलक्षणो मोक्षमार्ग इत्येष:।
मुख्योपचाररूप: प्रापयति परं पदं पुरुषम्।।

अपने आत्मा का निश्चय सम्यक दर्शन है आपने आत्मा का ज्ञान सम्यक ज्ञान है अपने आत्मा में स्थिरता सम्यक चारित्र है। इन तीनों से कर्म बंध नहीं होता है। निश्चय व्यवहार रत्नत्रय स्वरूप मोक्ष मार्ग यही आत्मा को परम पद में पहुंचा देता है।


Thursday, 16 July 2020

2 जीव, जीव के प्रकार (जैन गणित)


2 जीव के प्रकार

मुक्त जीव 

जिन जीवों ने अपने घातिया अघातिया कर्मो का नाश कर दिया है। संसार के परिभ्रमण से मुक्त हो गए है, जिनका जन्म मरण अब कभी नही होगा, वे जीव मुक्त है। सिद्ध भगवान मुक्त जीव है, जिन्होंने 8 कर्मों को नष्ट कर दिया है। मुक्त जीवों के कोई भेद नहीं होते है। इनके सभी गुण समान होते है।

संसारी जीव 

जो जीव संसार में परिभ्रमण करते है। संसार से अभिप्राय है परिभ्रमण इसे ही पंच परिवर्तन कहते है। जो जीव समस्त कर्मों से सहित होते है, संसार मे ही सच्चा सुख जानते है, और अनादि काल से इस संसार को अपना मानकर इसी में चतुर्गति परिभ्रमण कर रहा है अर्थात संसार मे बार-बार जन्म-मरण करता है, वह संसारी जीव है।
जैसे- मनुष्य, देव, तिर्यंच, नरक।

संसारी जीव इंद्रियों की अपेक्षा से 5 प्रकार के होते है- एकेन्द्रिय, दोइन्द्रीय, तीन इन्द्रीय, चार इन्द्रिय, पंचेन्द्रिय। जैन ग्रंथो के अनुसार एक इन्द्रिय जीव को स्थावर व शेष चार इन्द्रिय जीवों को त्रस जीव कहा गया है।

इस प्रकार संसारी जीवों के 2 प्रकार होते है- स्थावर और त्रस।

इसके भेद को हम एक चार्ट के माध्यम से समझते है:-




 


Wednesday, 15 July 2020

१. आत्मा (जैन गणित)


आत्मा

आत्मा को जीव तत्व भी कहते है। आत्मा अमिलन अनछुआ अविनाशी तत्व है। आत्मा का न तो जनम होता है और न ही इसका मरण होता है।
यह आत्मा दर्शन ज्ञान सहित है, वीतराग चारित्रवान है। आत्मा ही वास्तव मैं श्री जिनेंद्र परमात्मा है।

हर एक आत्मा को जब निश्चय नय से या पुद्गल के स्वभाव से देखा जावे तब देखनेवाले के सामने अकेला एक आत्मा सर्व पर के संयोग रहित खड़ा हो जायेगा । तब वहां न तो आठों कर्म दिखेंगे , न शरीरादि नोकर्म दिखेंगे , न राग-द्वेषादि भावकर्म दिखेंगे । सिद्ध परमात्मा के समान हर एक आत्मा दिखेगा । यह आत्मा वास्तव में अनुभव से पर है। तथापि समझने के लिए कुछ विशेष गुणों के द्वारा अचेतन द्रव्यों से जुदा करके बताया गया है। छः विशेष गुण ध्यान देने योग्य है।

 १. ज्ञान- जिस गुण के द्वारा यह आत्मदीपक के समान आपको तथा सर्व जानने योग्य द्रव्यों की गुण पर्यायों को एक साथ क्रम रहित जानना,इसी को केवलज्ञान स्वभाव कहते हैं।

 २. दर्शन- जिस गुण के द्वारा सर्व पदार्थों के सामान्य स्वभाव को एक साथ देखा जा सके वह केवल दर्शन स्वभाव है। सामान्य अंश को ग्रहण करने वाला दर्शन है।

 ३. सुख- जिस गुण के द्वारा परम निराकुल अद्वितीय आनंदामृत का निरंतर स्वाद लिया जावे। हर एक आत्मा अनंत सुख का सागर है।

 ४. वीर्य- जिस शक्ति से अपने गुणों का अनंत काल तक भोग या उपभोग करते हुये खेद व थकावट न हो , निरंतर सहज ही शांत रस में परिणमन हो , हर एक आत्मा अनंतवीर्य का धनी है। पुद्गल में भी वीर्य है , परंतु आत्मा का वीर्य उससे अनंत गुणा है।

 ५. चेतनत्व- चेतनपना , अनुभपना ''चैतन्यं अनुभवनं'' अपने ज्ञान का स्वभाव का निरंतर अनुभव करना, कर्म का व कर्मफल का अनुभव नहीं करना।

६. अमूर्तत्व-  यह आत्मा यद्यपि असंख्यात प्रदेशी एक अखंड द्रव्य है तथापि यह स्पर्श, रस,गंध,वर्ण से रहित अमूर्तिक हैं।

यदि मोक्ष का लाभ चाहते हो तो रात दिन उस आत्मा का मनन करो जो शुद्ध वीतराग निरंजन कर्म रहित है चेतना गुणधारी है या ज्ञान चेतनामय है जो स्वयं बुद्ध है जो संसार विजयी जिनेन्द्र है व जो केवलज्ञानी या पूर्ण निरावरण ज्ञानस्वभाव का धारी हैं।


अक्षय तृतीया का पावन पर्व

भजन-  अक्षय तृतीया पर्व है आया, आहार दान का,,,,, लय- थोड़ा सा प्यार हुआ है,,,,, स्वर- सुप्रिया जैन शब्द संयोजन- सुप्रिया जैन 🌹अक...