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Monday, 20 July 2020

छ: द्रव्य (जैन गणित)


छ: द्रव्य

द्रव्य

गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं । 

द्रव्य कितने होते हैं?

जाति अपेक्षा द्रव्य छः होते हैं।

द्रव्यों के नाम 

1. जीव, 

2. पुद्गल, 

3. धर्म, 

4. अधर्म, 

5. आकाश, 

6. काल। 

जीव द्रव्य 

जिसमें जानने और देखने की शक्ति होती है उसे जीव किसे कहते हैं ।

पुद्गल द्रव्य 

जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाया जाए और जिसका गलना ही स्वभाव हैं।

धर्म द्रव्य 

यहाँ पुजा-पाठ को धर्म नहीं कहा गया है।

यह धर्म द्रव्य की बात है।

जो स्वयं गतिशील रहते हुऐ गतिशील वस्तु को गति प्रदान करें।

जैसे चलती हुई मछली को बहता हुआ पानी

अधर्म द्रव्य 

यहां पाप को अधर्म नहीं कहा गया है*

यह अधर्म द्रव्य कि बात है

गमनपूर्वक

ठहरने वाले

जीव और पुद्गल को

जो ठहरन में निमित्त हैे

जैसे- पथिक को शीतल छाया 

धर्म और अधर्म द्रव्य कहाँ स्थित है?

सम्पूर्ण लोक में

तिल में तेल के समान फेले हुए हैं।

आकाश द्रव्य 

जो छहों द्रव्यों को रहने के लिए स्थान देता है।

प्रश्न- ऊपर नीले रंग में दिखने वाला कौन सा द्रव्य है?

उत्तर- पुद्गल 

प्रश्न- ऐसा कौन-सा स्थान है जहाँ रहने के लिए स्थान नहीं है?

उत्तर- आकाश का दूसरा नाम स्थान ही है। इसलिए आकाश सर्वत्र है। 

काल द्रव्य 

जो समस्त वस्तुओं के परिणमन (परिवर्तन) में निमित्त हो ।

काल द्रव्य कि अवस्था का नाम समय है अथवा दिन, घण्टा, घड़ी, महिना, वर्ष का नाम काल हैं।

प्रश्न- कौन-सा द्रव्य किस वस्तु में निमित्त है?

उत्तर- द्रव्य- धर्म, अधर्म, आकाश, काल

किसको निमित्त- 

धर्म- जीव और पुद्गल को

अधर्म- जीव और पुद्गल को

आकाश- सभी को

काल- सभी को

किसमें-

धर्म- चलने में

अधर्म- ठहरने में

आकाश- रहने में

काल- बदलने में

पुद्गल- रुपी द्रव्य अर्थात दिखने वाला द्रव्य

पुद्गल को छोड़कर शेष ५ अमूर्तिक (अरूपी) हैं।

अरूपी- जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण न पाया जाये।

अजीव द्रव्य कितने हैं?

पाँच- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल

प्रत्येक द्रव्य कितने कितने हैं?

जीव- अनंत

पुद्गल- जीवों से अनंत गुण अर्थात अनंतानंत

धर्म, अधर्म, आकाश- एक-एक

काल- असंख्यात

विश्व क्या है?

छह द्रव्यों के समुह को विश्व कहते हैं इन छह द्रव्यों से अभीष्ट विश्व में और कुछ भी नहीं है।

विश्व को बनाने वाला कौन है?

कौई नहीं, इसे भगवान ने भी नहीं बनाया है,विश्व अनादि, अनंत,स्वनिर्मित है ।

भगवान का क्या काम है?

भगवान विश्व को जानते हैं, कर्ता-हर्ता नहीं है। 

विश्व में जो कार्य होते हैं उसका कोई तो कर्ता होगा?

प्रत्येक द्रव्य अपने अपने कार्यों को कर्ता स्वयं है ।

कोई किसी का कर्ता नहीं है। जो ऐसा मान लेते हैं वही आगे चलकर भगवान बनते हैं।

द्रव्य को जानने से क्या लाभ है?

हम भी एक द्रव्य हैं, गुणों के पिण्ड हैं - इससे दीनता की भावना मिलती है।

विश्व व्यवस्था का ज्ञान होता है।

ग्रहीत मिथ्यात्व मिटता है।

ऐसा  ज्ञान होता है कि - भगवान कर्ता नहीं है।

में भी कर्ता नहीं हूँ।

यह जगह मेरी नहीं है।

परिणमन का कारण काल द्रव्य है।

आदि अनेक लाभ भी बताए गये हैं।


3 comments:

  1. प्रारंभिक अवस्था वाले जीवों के लिए बहुत उपयोगी है

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